आलसी बेटे
एक गांव मैं श्याम नाम का एक किसान रहता था। उसके दो बेटे थे रवि और किशन। रवि किसान का बड़ा बेटा था और किशन छोटा बेटा। किसान के दोनों बेटे आलसी और मनमौजी के थे, दोनों के दोनों मां के लाडले थे एक दिन।
पिता - (थोड़ी जोर से चिल्लाते हुए) रवि किशन कहां हो तुम दोनों । अरे रवि किशन कहां हो तुम दोनों।
पत्नी कि तरफ देखते हुए कहते हैं "तुम ही बता दो"
पत्नी - (पूजा के स्थान से) वह घड़ी देखो ? और बताओ कितने बज रहे हैं।
पिता - सुबह के ग्यारह 11:00 बज रहे हैं।
माता - हां तो अभी मेरे दोनों बेटे सो रहे हैं । अभी एक घंटे बाद उठेंगे।
पत्नी की यह बात सुनकर पते गुस्से में बड़बड़ाते हुए कहता है खुद तो जल्दी नहीं उठती और ना अपने बेटों को उठाती हो। पति बाहर जाता है और कहता है । आज मैं इनको नहीं छोडूंगा, आज मैं इनको कैसे उठाता हूं। पिता अपने बेटे रवि और किशन के कमरे में जाते हैं और दोनों बेटों के ऊपर पानी फेंक देते हैं पानी के पढ़ते ही दोनों बेटे चलाते हैं बारिश..... बारिश..... बारिश... भागो।
पिता - अरे बारिश नहीं है नालायकों
रवि - भैया मां से कहो भिखारी को रोटी दे दो।
किशन - तू ही बोल दे भाई आंख खोलना का मन नहीं ही नहीं कर रहा। भिखारी को भी अभी आना था।
रवि और किशन की यह बात सुनकर उनके पिता को काफी ज्यादा गुस्सा आ जाता है और पास में से एक डंडा उठाते हैं और जोर जोर से उनको मारने लगते हैं । लट्ठे पढ़ते ही तभी दोनों बेटे चिल्लाने लगते हैं और कहते हैं पिताजी ... ,पिताजी...,अरे पिताजी.....। बेटों की चिल्लाने की आवाज सुनकर माता बोलती है अरे... अरे... अरे... सुबह-सुबह मेरे बच्चों को क्यों मार रहे हो। पत्नी की यह बात सुनकर पति बोलता है। तुम्हीं के लाड प्यार ने इन्हें बिगाड़ रखा है ना घर का काम करते हैं ना बाहर का बस पूरे दिन खाना और सोना है। यह बात सुनते ही दोनों बेटे बोलते हैं । पिताजी हम खेतों के काम करने के लिए नहीं बने हैं हम तो मंत्री और महामंत्री बनने के लिए पैदा हुए हैं पिताजी हमसे यह खेत-वेत का काम नहीं होता।
माता - हां अब तुम मेरे बच्चों को कुछ भी नहीं बोलोगे।
पिता - ठीक है मैं तुम लोगों से 1 महीने तक कुछ नहीं बोलूंगा । लेकिन एक महीने बाद भी तुम यदि मंत्री और महामंत्री नहीं बने तो तुम मेरे साथ खेत में काम करोगे।
इतना सुनते ही दोनों बेटे हां ठीक है! पिताजी ठीक है! पिताजी आप जाओ और हमें सोने दो कहते हैं।
पिता - अभी भी तुम लोगों को सोना है।
माता - हां, चलो चले जाओ अभी मेरी दोनों बेटों को सोने दो।
पिता वहां से चले जाता है और दोनों बेटे पुनः सो जाते हैं और कुछ समय बाद उठते हैं।
पिता - अरे! उठ गए नवाब साहब, जाओ खाना खिलाओ अपने लाडलो को।
सब खाना खाने बैठ जाते हैं खाना खाने के बाद पिता खेतों पर चला जाता है और किशन, रवि दोनों घर से चलने लगते हैं और जंगल की तरफ चले जाते हैं।
रवि - किशन हमने पिताजी से तो कह तो दिया कि हम महामंत्री और मंत्री बनेंगे लेकिन कैसे?
किशन - अरे रवि तू इतना परेशान क्यों हो रहा है कोई ना कोई तरकीब निकालेंगे ही।
रवि और किसान सोचते रहते हैं की थोड़ी देर बाद-
रवि - महामंत्री और मंत्री बनने के लिए हमें सबसे पहले महल के अंदर पहुंचना होगा।
किशन - तो देर किस बात की है तो चलते हैं
दोनों राजा के महल में जाते हैं।
महाराजा - कौन हो तुम दोनों ?
रवि - महाराज! हम इस गांव में रहते हैं।
किशन - महाराज हम दोनों को काम चाहिए।
महाराज - ठीक है! हम तुम दोनों को माली का काम देते हैं।
रवि - ठीक है! महाराज,।
दोनों को माली का काम मिल जाता है और धीरे-धीरे राजा के मन में जगह बना लेते हैं, एक दिन रानी भागती-भागती दरबार में आती है।
महारानी - महाराज, महाराज, महाराज।
महाराज - क्या हुआ? महारानी आप ऐसे भागती हुई क्यों आ रही हो।
महारानी - (थोड़ी रोते हुए धीमे स्वर में) महाराज हमारे सबसे प्रिय हार चोरी हो गया है ,जो हमारी मां ने दिया था, उनकी वह हार हमारे पास आखिरी निशानी थी।
महाराज - महारानी आप परेशान मत हो, वह हार हम आपको लाकर जरूर देंगे।
महारानी - महाराज वह हार हमें चाहिए, आप कुछ करिए!
महाराज रानी की यह हालत देखकर दुखी होने लगा, क्योंकि रानी का वह हार सबसे प्रिय था। राजा ने हार खोजने के लिए नगर में घोषणा करवाई। नगर मैं घोषणा सुनते ही सभी नगरवासी रानी का हार खोजने लगे, किसी को भी वह हार नहीं मिला रानी अब और दुखी होने लगी, रानी को दुखी देख राजा को बहुत बुरा लगा। एक दिन.....
रवि - महाराज! महाराज!
महाराज - कहो! तुम दोनों को क्या कहना है?
किशन - ऐ.. महाराज हम भी एक बार महारानी का हार खोलना चाहते हैं।
महाराज - नहीं...नहीं... अब हमें आस मत दिलाओ।
रवि - महाराज हमें एक अवसर दीजिए। मेरे भाई एक ज्योतिषी हैं, वह इतने दिनों से नक्षत्रों की गणना कर रहा था ।आज अमावस्या की रात है आज रात ध्यान करेगा और महारानी का हार ढूंढ लाएगा।
महाराज - अगर ऐसा ही था, तो तुमने पहले क्यों नहीं ढूंढा?
किशन - ऐसा वो महाराज हम दोनों चाहते थे कि गांव वालों को भी एक मौका मिलना चाहिए ना?
महाराज - दिया तुम्हें समय लेकिन यदि तुम हार ढूंढ कर नहीं लाए तो तुम दोनों को फांसी की सजा दी जाएगी।
रवि - महाराज मेरा भाई इस गांव से दूर पहाड़ी पर अकेला ध्यान करेगा ताकि चांद का प्रभाव कम ना रहे। आपको कल तक आपको हार लाकर देंगे, बस आप हमारा रहने का इंतजार करवा दीजिए और हां महाराज वहां कोई ना आए।
महाराज - ठीक है, ठीक है ।
किशन - महाराज मैं वो चोर के काफी नजदीक पहुंच गया हूं।
महाराज - अच्छा अच्छा ठीक है।
राजा उन दोनों के लिए एक तंबू गढ़वा देते हैं और वो दोनों वहां चले जाते हैं वहां जाकर -
रवि - हमने महाराज को तो कह दिया, हम हार को वापस लाएंगे।
किशन - ऐ.... लेकिन कैसे? लाएंगे।
रवि - तू परेशान मत हो, और तू वहां चौकी पर बैठ जा और देखते जा।
किशन चौकी पर बैठ जाता है तभी वहां बूढ़ी औरत आती है।बूढ़ी औरत मन ही मन सोचते हुए आती है मुझे लगता है की महाराज के सामने मेरा राज बता ही देंगे, मुझे इनसे माफी मांग लेने चाहिए। तभी वहां किशन मंत्रों का जाप शुरू कर देता है।
बूढ़ी औरत - बेटा बेटा मुझे माफ कर दो मैं रानी की दासी हूं। मैंने रानी का हार चुराया है, यह बात राजा को मत बताना अन्यथा राजा मुझे महल से निकाल देंगे।
किशन - ठीक है ठीक है। मैं राजा को नहीं बताऊंगा, भविष्य में ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए।
बूढ़ी औरत - नहीं होगा बेटा, नहीं होगा बस इस बार मुझे बचा लो।
किशन - अच्छा अच्छा ठीक है वह हार कहां है।
बूढ़ी औरत - ये रहा हार।
बूढ़ी औरत अपनी पोटली से वो हार निकाल देती है और उनको दे देती है।
रवि - चलो यहां से जल्दी जाओ।
बूढ़ी औरत वहां से चली जाती है वहां से चली जाने के बाद किशन बोलता है
किशन - अरे रवि ये कैसे हुआ।
रवि - मुझे पता था वह हार चोरी हुआ है और चोर अपने आपको बचाने के लिए हमारे पास जरूर आएगा इसीलिए तो महाराज से घोषणा करवाई थी।
किशन - ऐ...तो अच्छा हुआ चोर हमारे जाल में फस गया।
रवि - चोर नहीं रे चोरनी।
अगले दिन सुबह वहां तंबू के पास महाराज आते हैं।
महाराज - रवि-किशन क्या वह हार मिला।
किशन - ये लीजिए महाराज महारानी का सुंदर हार।
महाराज - ये कैसे। ये कैसे मिला तुम दोनों को तुम दोनों ने तो कमाल कर दिया। हम तुम दोनों से बहुत खुश हैं बताओ तुम दोनों को क्या चाहिए।
किशन - महाराज मुझे महामंत्री और मेरे भाई को मंत्री बना दीजिए।
राजा ने अपने वादों को पूरा किया और उन्हें महामंत्री और मंत्री का पद दे दिया, यह बात पिता को जब पता चली तो बहुत खुश हुए।
रवि - देखो पिताजी हो गया ना हमारा सपना पूरा।
पिताजी - हां... हां... हो गया लेकिन मेरी वजह से जब मैंने पानी फेंक कर उठाया था ना ,यह उसी का नतीजा है।