कहानी हिमाचल प्रदेश की है हम चार लोग — मैं, रमेश चाचाजी, एका और बादशाह — अपनी छोटी सी यात्रा के लिए हिमाचल प्रदेश की काली घाटी गए थे। ये घाटी जानी जाती है अपनी खूबसूरती और पहाड़ी इलाकों में बसी खामोशी के लिए। लेकिन हमें क्या पता था कि इस शांत स्थल में हमें एक ऐसी जंग का सामना करना पड़ेगा, जो हमारी पूरी जिंदगी का सबसे डरावना और रोमांचक अनुभव साबित होगी।
शाम के समय, जब हम घाटी के बीचों-बीच बने एक छोटे से गाँव में पहुंचे, तो वहां का माहौल कुछ अजीब सा लगा। ठंडी हवा और धीरे-धीरे घेरते बादल हमें यह एहसास दिला रहे थे कि हम किसी पुराने युग में आ गए हैं। गाँव के लोग चुपचाप अपने घरों में समाए हुए थे, जैसे किसी खतरनाक चीज़ का एहसास उन्हें भी हो।
"कहाँ चल रहे हो? यहाँ रहने का तरीका थोड़ा अलग है," रमेश चाचाजी ने गाँव के बुजुर्ग से पूछा, जो हमसे कुछ दूरी पर खड़ा था।
"सावधान रहना," बुजुर्ग ने धीमे से कहा, "यहाँ की भूमि में अजीब शक्तियाँ हैं। रात को बाहर मत निकलना।"
हमने उसकी बातों को नजरअंदाज किया, क्योंकि हम सिर्फ ट्रैकिंग और सुकून की तलाश में आए थे। शाम होते ही हम एक छोटे से ढाबे पर बैठ गए। वही ढाबा जो गाँव के आखिरी छोर पर था। एकाएक, हलचल हुई और कुछ आवाजें सुनाई दीं। बादशाह, जो कि हमारे समूह का सबसे साहसी था, बोला, "कुछ तो गड़बड़ है। हमें देखना चाहिए।" हम सभी ढाबे से बाहर निकले और देखा कि अंधेरे में कुछ लोग इकट्ठा हो रहे थे। अचानक, एक भयानक आवाज आई, और हम समझ गए कि यह कोई सामान्य घटना नहीं है। वो लोग सिर्फ गांववाले नहीं थे, बल्कि उनका उद्देश्य कुछ और था। "हमने सुना है कि काली घाटी में प्राचीन युद्ध हुआ था," एका ने कहा, "यहाँ की जमीन पर हमेशा कोई न कोई अदृश्य संघर्ष चलता रहता है।"
बातों की शुरुआत के साथ ही, एक तीव्र आवाज आई, जैसे किसी भारी वस्तु का गिरना। तभी हमारे सामने कुछ काले कपड़े पहने हुए, हथियारों से लैस लोग प्रकट हुए।
"हम इनका सामना करेंगे," रमेश चाचाजी ने कहा, "जिंदगी में कभी न कभी, हमें डर से बाहर निकलना ही पड़ता है।"
हम चारों ने एक साथ कदम बढ़ाए। बादशाह ने सबसे पहले उनकी तरफ एक चुनौती भरी नजर डाली और हमारे बीच की दूरी कम करते हुए हमें संकेत दिया कि हम आक्रमण करने वाले हैं। युद्ध की शुरुआत हुई। काली घाटी की सर्द हवा, हमारी शंख ध्वनियों और हमले की आवाज़ों से गूंज उठी। एकाएक, युद्ध के बीच में एक अजीब सी ऊर्जा महसूस होने लगी, जैसे यह लड़ाई सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि कुछ और था। उन अजनबी लोगों की ताकत, हमारी सोच से परे थी।
हमने लड़ाई जारी रखी, लेकिन अचानक रमेश चाचाजी गिर पड़े। एका और बादशाह ने उन्हें बचाने की कोशिश की, और मैं खुद को संजीवनी शक्ति से भरते हुए उन्हें सहारा देने लगा। धीरे-धीरे, वो अजनबी लोग कुछ शांत हुए। हम चारों एक साथ खड़े हुए, और उनके आक्रामक रुख को शांत किया।
वो लोग अचानक चुप हो गए, जैसे कोई जादू हो गया हो। और फिर, अंधेरे में गायब हो गए।
काफी देर बाद, हम समझ पाए कि वो किसी प्रकार के प्राचीन योद्धा थे, जिनकी आत्माएँ काली घाटी की ज़मीन पर बसी हुई थीं। उन्होंने हमें अपनी ताकत का अहसास कराया, लेकिन अब वे शांत हो गए थे, जैसे एक समझौता हो गया हो।
रात के अंधेरे में, हम सभी एक-दूसरे को देख रहे थे। किसी ने कुछ नहीं कहा, लेकिन हमारी आंखों में वही अहसास था — काली घाटी ने हमें एक रहस्य सिखाया था, जो शायद हम कभी नहीं भूलेंगे।