यह कहानी मेरी जिंदगी की है। हम लोग हिमाचल प्रदेश के घने जंगलों में लकड़ी काटने का काम करते थे। यह काम हमारी रोज़ी-रोटी का साधन था, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ भी थीं। एक दिन, हमारे समूह को एक बड़े ठेके के तहत लकड़ी काटने का काम मिला। हमने कई दिनों की मेहनत के बाद सारा काम पूरा कर लिया। लेकिन ठेकेदार ने कहा कि कटे हुए लकड़ियों की देखरेख के लिए किसी एक व्यक्ति को अगले 15 दिन तक उस जगह पर रुकना होगा।
हमारे समूह के बाकी लोग कोई न कोई बहाना बनाकर जाने की तैयारी करने लगे। मैं भी इस काम से बचने की कोशिश कर रहा था, लेकिन अंत में सभी ने मुझे मनाया, और मैं वहाँ रुकने को तैयार हो गया।
रविवार को हमारा पूरा समूह उस जगह पर सफाई और समापन की तैयारी कर रहा था। सभी अपने-अपने औज़ार बांध रहे थे और अगले दिन दूसरी जगह जाने की तैयारी में थे। मुझे चौकीदारी का काम सौंप दिया गया। दिनभर सबने मिलकर हँसी-मजाक की, लेकिन शाम होते-होते वे सब मुझे अकेला छोड़कर चले गए।
जब सभी चले गए, तो पहली बार मुझे उस जंगल की गहराई और सन्नाटा महसूस हुआ। सूरज डूबने लगा था, और चारों तरफ अंधेरा छाने लगा। मैंने अपना छोटा सा चूल्हा जलाया और उसमें लकड़ियाँ डालकर आग जलाई। आग की गर्मी से मन कुछ शांत हुआ।
जैसे-जैसे रात बढ़ने लगी, आसपास की आवाजें अजीब और डरावनी लगने लगीं। कभी झींगुर की आवाज तेज हो जाती, तो कभी झाड़ियों में सरसराहट होती। मैंने इसे अपने दिमाग का वहम समझकर नजरअंदाज कर दिया। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने मेरी रात को एक भयानक मोड़ दे दिया।
चूल्हे में जल रही लकड़ियाँ अचानक हिलने लगीं। पहले मैंने सोचा कि यह हवा का असर हो सकता है, लेकिन वहां हवा का नामोनिशान नहीं था। कुछ लकड़ियाँ चूल्हे से बाहर गिर गईं, जैसे किसी ने उन्हें धक्का दिया हो। मैं घबरा गया और अपने चारों ओर नजर दौड़ाई। चारों तरफ अंधेरा था और सन्नाटा भरा हुआ था, लेकिन कहीं दूर से एक धीमी सी सरसराहट सुनाई दी।
मैंने अपनी टॉर्च उठाई और आवाज की दिशा में देखा, पर वहां कुछ नहीं था। तभी मुझे महसूस हुआ कि कोई मुझे देख रहा है। मैंने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहां भी कुछ नहीं था। अचानक घर के अंदर से खटखटाने की आवाजें आने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे कोई अदृश्य ताकत मेरे आसपास घूम रही हो।
मैंने डरते-डरते प्रार्थना शुरू की और भगवान का नाम लेने लगा। तभी, झाड़ियों के पीछे से लाल आंखों वाली एक परछाईं दिखाई दी। वह आकृति धीरे-धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगी। मेरी सांसें थम गईं। मैंने हिम्मत जुटाकर टॉर्च की रोशनी उस पर डाली, लेकिन वह आकृति तुरंत गायब हो गई।
पूरी रात मैंने किसी तरह जागते हुए बिताई। हर पल मुझे लगता था कि कुछ भयानक होने वाला है। लेकिन जैसे ही सूरज की पहली किरण फूटी, सब कुछ सामान्य लगने लगा। जंगल की आवाजें बंद हो गईं, और हवा में एक सुकून सा महसूस हुआ। सुबह मैंने अपना सामान समेटा और वहां से भाग निकला........!